हँस के बीमार कर दिया देखो,
तुमने अच्छी भली उदासी को
बाद मुद्दत चमन में आया हूँ,
मेरे फूलों, बताओ कैसे हो ?
कैसे कैसे हसीन मंज़र थे,
आखिरश हिज्र खा गया सबको।
घर के झगडे न लांघ पाए इसे
घर की दीवार इतनी ऊँची हो
रौशनाई न दिल की सूखे अब
इस सुनहरे कलम से कुछ लिक्खो
रास्ता कच्ची नींद जैसा है
ख़ाब की तरह चुपके चुपके चलो
क्यूँ हो आवारगी में कोई पड़ाव
इस समंदर में क्यूँ जज़ीरा हो
हुक्म देती हुई वो आँखे, उफ़!
उनका सारा कहा, हुआ मानो
दर्द की आँच दिल में है “आतिश”,
साँस जलने लगी है कम कर दो