गुरुवार, 17 मई 2012

हँस के बीमार कर दिया देखो


हँस के बीमार कर दिया देखो,
तुमने अच्छी भली उदासी को 

बाद मुद्दत चमन में आया हूँ,
मेरे फूलों, बताओ कैसे हो ?

कैसे कैसे हसीन मंज़र थे,
आखिरश हिज्र खा गया सबको।

घर के झगडे न लांघ पाए इसे
घर की दीवार इतनी ऊँची हो

रौशनाई न दिल की सूखे अब
इस सुनहरे कलम से कुछ लिक्खो

रास्ता कच्ची नींद जैसा है
ख़ाब की तरह चुपके चुपके चलो

क्यूँ हो आवारगी में कोई पड़ाव
इस समंदर में क्यूँ जज़ीरा हो

हुक्म देती हुई वो आँखे, उफ़!
उनका सारा कहा, हुआ मानो

दर्द की आँच दिल में है “आतिश”,
साँस जलने लगी है कम कर दो

मंगलवार, 8 मई 2012

क्या बताएं ग़म के मौसम की तुम्हें


क्या बताएं ग़म के मौसम की तुम्हें
बारहा रहती है इक जल्दी तुम्हें

तुम कहाँ के फूल हो जो रोज़ ही
पूछती रहती है इक तितली तुम्हें

याद आते हैं मुझे ताने सभी
याद आती है मेरी झिड़की तुम्हें?

भेज दो यादों में अपनी खुशबुएँ
मिल गयी होगी मेरी अर्ज़ी तुम्हें

नम हुई होगी मेरी यादों की राख
इसलिए बारिश लगी सौंधी तुम्हें

झांकती रहती थी इस खिड़की से तुम
ढूंढती रहती है अब खिड़की तुम्हें

दिल के सहरा में बहा करती थी जो
याद कुछ आती है वो नद्दी तुम्हें?

आज ‘आतिश’ दूर क्यूँ बैठे हो तुम?
आग लगती थी बहुत अच्छी तुम्हें