मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

एक ही ग़म तेरे जाने का रहा


एक ही ग़म तेरे जाने का रहा
एक दिन वो भी मगर जाता रहा
आज माँ का जी बहुत अच्छा रहा
आज दिन भर रेडियो बजता रहा
ख़ाब में खुलती रही खिड़की कोई
और उस खिड़की में वो आता रहा
लॉन में आया मुझे तेरा खयाल
मैं वहीं फिर देर तक बैठा रहा 
जह्न के कमरे में तेरा इक खयाल
रात भर जलता रहा बुझता रहा 
आख़िरश पीला ही पड़ना था अगर
दिल का कागज़ बेसबब सादा रहा 
एक नन्हा ख़ाब मेरी नींद में
पाँव उचकाकर तुझे छूता रहा 
इक उचटती सी नज़र उसकी लगी
और मैं बिखरा तो फिर बिखरा रहा

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक नन्हा ख़ाब मेरी नींद में
पाँव उचकाकर तुझे छूता रहा
...........वाह ..क्या लिखा है आपने ...

Majaal ने कहा…

कही कहीं लय इधर उधर लगी, बाकी भाव हमेशा की तरह पुख्ता रहे।
लिखते रहिये…