बुधवार, 31 जुलाई 2013

यू टर्न - नज़्म

ये रस्ता
जो सीधा नज़र आ रहा है
जिसे नाम देते हैं हम ज़िन्दगी का
इसी रास्ते में छुपे हैं कई मोड़
जैसे किनारे लगी झाड़ियों में छिपा सांप कोई
यही मोड़ अचानक कहीं से निकल कर
फुंफकारते हैं
अगर बच गये हम, तो उनकी इनायत
वगरना फिर आगे कोई 'कट' नहीं है
जहां हाथ देकर, के यू टर्न ले लें..

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

عجب نقشہ ہے دیکھو میرے گھر کا/अजब नक़्शा है देखो मेरे घर का- ग़ज़ल


अजब नक़्शा है देखो मेरे घर का
हर इक खिड़की पे मंज़र है सहर का
मिरे हालात बेहतर हो चले हैं
भरोसा कर लिया था इस ख़बर का
मिरे सामान में शामिल है मिट्टी
इरादा है समन्दर के सफ़र का
खड़ी थी वादियों में एक लडकी
पहन कर कोट इक यादों के फ़र का
पहाड़ों से समंदर तक खिंचा है
ये दरिया है कोई टुकड़ा रबर का
परिंदा शाख़ पे माज़ी के बैठा
किसी की याद है कोटर शजर का
बहारो! चादरें ले आओ इनकी
बदन उघडा हुआ है हर शजर का
कोई जिग्सा पज़ल है दुनिया सारी
मैं इक टुकड़ा हूँ, पर जाने किधर का
हरी क़ालीन सी इक लॉन में थी
और उसपे फूल था इक गुलमोहर का
बुझी आख़िर में सारी आग ‘आतिश’
भले ही दोष था बस इक शरर का


عجب نقشہ ہے دیکھو میرے گھر کا 
ہر اک کھڑکی پے  منظر ہے سحر کا 

مرے سامان میں شامل ہے مٹی 
ارادہ ہے سمندر کے سفر کا 

مرے حالات بہتر ہو چلے ہیں 
بھروسہ کر لیا تھا اس خبر کا

کھڑی تھی وادیوں میں ایک لڑکی 
پہن کر کوٹ اک یادوں کے فر کا 

پہاڑوں سے سمندر تک  کھنچا ہے
 یہ دریا ہے کوئی ٹکڑا ربر کا 

پرندہ شاخ پے ماضی کے بیٹھا 
کسی کی یاد ہے کوٹر شجر کا 

بہارو! چادریں لے آؤ انکی 
بدن اگھڑا ہوا ہے ہر شجر کا 

کوئی جگسا پزل ہے ساری دنیا 
میں اک ٹکڑا ہوں پر جانے کدھر کا 

بجھی آخر میں ساری آگ 'آتش'
بھلے ہی دوش تھا بس اک شرر کا 

सोमवार, 29 जुलाई 2013

रोना आये तो - नज़्म

रोना आये
तो जी भर कर रो लेना तुम
आँखों में
काग़ज़ होते हैं
जिनपे खाब लिखे होते हैं
अश्कों को गर रोकोगे तुम बहने से
वो आँखों में भर जायेंगे
धीरे धीरे
वो सब कागज़
जिन पर ख़ाब लिखे होते हैं
गल जायेंगे
रोना आये
तो जी भर कर रो लेना तुम..!

एक पुल पर/ ایک پل پر - nazm


वो एक पुल था
जहां मिला था
मैं आख़िरी बार तुमसे जानां
मुझे हमेशा की तरह
पुल के उस ओर जाना था मैं जिधर से
नदी को जाते हुए निहारूं
मगर तुम्हें पुल का वो ही हिस्सा
ज़ियादा भाया हमेशा जैसे
जिधर से तुम डूबते हुए
आफ़ताब को देख सकती थी
वहीं पे डूबी थी अपने रिश्ते की आख़िरी नब्ज़
वो एक पुल
जो मिला रहा था
नदी के इक तट को दूसरे से
वहीं मैं तुमसे अलग हुआ था..

وہ ایک پل تھا
جہاں ملا تھا 
میں آخری بار تم سے جاناں 
مجھے ہمیشہ کی طرح 
پل کے اس اور جانا تھا میں جدھر سے 
ندی کو جاتے ہوئے نہاروں 
مگر تمہیں پل کا وہ ہی حصّہ 
زیادہ بھیا ہمیشہ جیسے 
جدھر سے تم ڈوبتے ہوئے 
آفتاب کو دیکھ سکتی تھی 
وہیں پے ڈوبی تھی اپنے رشتے کی آخری نبض 
وہ ایک پل جو 
ملا رہا تھا 
ندی کے اک تٹ کو دوسرے سے 
وہیں میں تم سے الگ ہوا تھا