उजाले पलटकर किधर जायेंगे
फ़ज़ाओं में हर सू बिखर जायेंगे
फ़ज़ाओं में हर सू बिखर जायेंगे
यूँ ही ख़ाली-ख़ाली जो बीतेंगे दिन
तो हम इक उदासी से भर जायेंगे
ख़ुदा तक पहुँचने की बाज़ीगरी?
ज़रा ध्यान टूटा कि मर जायेंगे
ये सब लोग जो नींद में है, अभी
कोई ख़ाब देखेंगे डर जायेंगे
कई दिन से मुझमे है इक शोर सा
ख़मोशी से ये दिन गुज़र जायेंगे
यही जिस्म आया है ले कर इधर
इसी नाव से हम उधर जायेंगे
हमारा भी रस्ता उधर का ही है
कहीं बीच में हम उतर जायेंगे
इस आवारगी को कहीं छोड़कर
ये रस्ते किसी दिन तो घर जायेंगे
हम ‘आतिश’ हैं हमको नहीं कोई डर
जलाओगे तुम हम संवर जायेंगे
8 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत गज़ल..
यही जिस्म आया है ले कर इधर
इसी नाव से हम उधर जायेंगे
मेरे करीब!!
ख़ुदा तक पहुँचने की बाज़ीगरी?
ज़रा ध्यान टूटा कि मर जायेंगे
bahut sundar bhavabhivyakti.badhai swapnil ji.
बहुत खूबसूरत गज़ल
वाह!
बहुत खूबसूरत हैं सारे अशआर ..
पता नहीं क्यूँ मुझे अपनी लिखी हुई एक रचना याद आ गयी ..
नज़र भर के देख लो हम सँवर जायेंगे
ऐसा ही था कुछ।
वाह... बेहद खुबसूरत!
वाह सुन्दर ग़ज़ल
वाह स्वप्निल जी वाह
हमेशा की तरह शानदार गज़ल
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
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