इक शाम उठाकर
साहिल से
तुमने बाँधी है
ज़ुल्फो मे
इक रिबन उठा कर
लहरों से,
अब सुबह जो
खोली हैं जुल्फे
इक झरना सा
बह निकाला है,
इक मौज उजाले की जानां
कल कल की सदा मे
बहती है....
ये भीगे बाल
सुख़ाओ ना,
इक बादल की
टॉवेल लाकर
अब इनको ज़रा सा
झटकाओ,
अब शाम-ओ-सहर के
कुछ छींटे
चेहरे पे मेरे तुम
बरसाओ.......
17 टिप्पणियां:
इक बादल की
टॉवेल लाकर
अब इनको ज़रा सा
झटकाओ,
वाह क्या टावल है...प्यारी सी झरने की तरह झरती हुई नज़्म...
गुलज़ारिश मूड में लिखे हो लगता है..
बहुत सुन्दर कविता है ... उपमाएं बहुत सुन्दर लगी ...
bahut hi achhi kavita....
padhna achha laga...
yun hi kihte rahein...
aapki pichli post par maine aapko jawab diya tha ummeed hai aapne padha hoga...
bahut khoob urdu english sab kuch kitna dil se istmal kiya....
दिल से शब्द बरसाया है आपने...
सुंदर प्रयास.....!!
निःशब्द!!!
इक बादल की
टॉवेल लाकर
अब इनको ज़रा सा
झटकाओ,
वाह !!!!!!!!! क्या बात है.....
बहुत ही हसीन कल्पना .... लाजवाब सोच ... मज़ा आ गया पढ़ कर ....
what a thought sirji ....behad khoobsoorat!
मुझे किसी ने कहा था की नई कविता को आप बहुत नाटकीयता से पढ़ सकते है मगर ले से गा नहीं सकते
आज ये बात गलत लगी
बहुत सुन्दर
बहुत खूब रचा...आनन्द आ गया!!
सुन्दर कल्पनायें...नवीन उपमायें...लयात्मकता...मोहकता...मासूमियत...ये सब पाया मैंने...यहाँ.
@mumma
:)
@kush
main to 24 ghante usi mood me rehta hun .. :)
@indraneel ji
bahut bahut shuqriya
@shekhar ji
shuqriya ji ...
@dilip ji ..
bahut bahut shuqriya
@satrangee ji heer ji samvedna ji
dher sara shuqriya ap sab ka
@rachna ji , digambar ji , vandna
dher sara thanku hai aap logon ko
@venus babu
are sahab ..kavita me lay na ho to ..maza kahaan hain..aazad nazmon me bhi lay honi chahiye..halanki ..ye mujhse bar bar nahi hota...
shuqriya aapne lay pehchani
@sameer ji
:) than ku hai ji
@ mukti ji
thanku ji . maine jo jo rakhna chjaha..wo sab aap ko dikh gaya.. :)
Kya kahun...sabne kah diya...dohra dun, chalega?
han re avi...chalega.. :)
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