सिलवट सिलवट चाँद पड़ा है,
हर कोने पे तारे हैं ,
कुछ उल्काएं हैं जो गिरी हैं
बिस्तर के सिरहाने से ,
ओस की बूंदे सुलग रही हैं
बिस्तर के पाए के पास ,
तकिये के नीचे इक
मिल्की वे कि साँसे अटकी हैं...
जाने किसके साथ गुजारी
रात ने अपनी रात यहाँ ...! :D
13 टिप्पणियां:
waaj janaab...kya kahein lajawaab...:)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
जाने किसके साथ गुजारी
रात ने अपनी रात यहाँ ...!
वाह! बहुत सुन्दर तरीके से आपने इन शब्दों को सजाया है!
ओस की बूंदे सुलग रही हैं
बिस्तर के पाए के पास ,
बहुत कोमल से एहसास....खूबसूरत नज़्म..
सारई कायनात इकट्ठी कर ली है...
बेहतरीन पंक्तियाँ ...गज़ब के भाव है अब तो रात को भी अपनी रात का हिसाब देना पडेगा
swapnil ! tmhari is gazal par Aah or Waah dono ek saath niklin :) ...was missing your style of writting..thanks so much for shareing it here.
ओस की बूंदे सुलग रही हैं
बिस्तर के पाए के पास ...
Guru...kya kaatil nazm kahi hai...
hatts off !
superb! gulzaar saab ki shaily ko ghol kar hi pi liya aapne :-)
bahut achhe...
achha laga padhkar...
yun hi likhte rahein...
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
बहुत सुंदर कविता कही है आपने। हार्दिक बधाई।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
:)
wowwwwwwwww !! greattttt !!
:):):)
raat ka chehra yaad aaya...yeh nazm padhke kaise sharma gayi hogi..:P
khair..
bahuut khoobsoorat nazm hai
- Taru
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