नींद से आ कर बैठा है
ख़ाब मेरे घर बैठा है
अक्स मिरा आईने में
लेकर पत्थर बैठा है
एक बगूला* यादों का
खा कर चक्कर बैठा है
उसकी नींदों पर इक ख़ाब
तितली बन कर बैठा है
रात की टेबल बुक करके
चाँद डिनर पर बैठा है
आ जाता है बाहर भी
दिल में जो डर बैठा है
अँधियारा खामोशी से
ओढ़ के चादर बैठा है
आतिश’ धूप गयी कब की
घर में क्यूँ कर बैठा है?
बगूला - चक्रवात
1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरत गज़ल..... चाँद का डिनर मस्त रहा होगा
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