अपने ख़ाबों को इक दिन सजाते हुए
गिर पड़े चाँद-तारों को लाते हुए
गिर पड़े चाँद-तारों को लाते हुए
एक पुल पर खड़ा शाम का आफ़ताब*
सबको तकता है बस आते जाते हुए
सबको तकता है बस आते जाते हुए
एक पत्थर मिरे सर पे आ कर लगा
कुछ फलों को शजर* से गिराते हुए
कुछ फलों को शजर* से गिराते हुए
ए ग़ज़ल तेरी महफ़िल में पायी जगह
इक ग़लीचा बिछाते-उठाते हुए
इक ग़लीचा बिछाते-उठाते हुए
सुब्ह इक गीत कानों में क्या पड़ गया
कट गया दिन वही गुनगुनाते हुए
कट गया दिन वही गुनगुनाते हुए
ज़ात से अपनी ‘आतिश’ था ग़ाफ़िल बहुत
जल गया ख़ुद दिया इक जलाते हुए
जल गया ख़ुद दिया इक जलाते हुए
आफ़ताब - सूर्य
शजर - पेड़
2 टिप्पणियां:
बेहतरीन ग़ज़ल! हर शेर दमदार। ...वाह!
सुब्ह इक गीत कानों में क्या पड़ गया
कट गया दिन वही गुनगुनाते हुए
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