एक ही ग़म तेरे जाने का रहा
एक दिन वो भी मगर जाता रहा
एक दिन वो भी मगर जाता रहा
आज माँ का जी बहुत अच्छा रहा
आज दिन भर रेडियो बजता रहा
आज दिन भर रेडियो बजता रहा
ख़ाब में खुलती रही खिड़की कोई
और उस खिड़की में वो आता रहा
और उस खिड़की में वो आता रहा
लॉन में आया मुझे तेरा खयाल
मैं वहीं फिर देर तक बैठा रहा
मैं वहीं फिर देर तक बैठा रहा
जह्न के कमरे में तेरा इक खयाल
रात भर जलता रहा बुझता रहा
रात भर जलता रहा बुझता रहा
आख़िरश पीला ही पड़ना था अगर
दिल का कागज़ बेसबब सादा रहा
दिल का कागज़ बेसबब सादा रहा
एक नन्हा ख़ाब मेरी नींद में
पाँव उचकाकर तुझे छूता रहा
पाँव उचकाकर तुझे छूता रहा
इक उचटती सी नज़र उसकी लगी
और मैं बिखरा तो फिर बिखरा रहा
और मैं बिखरा तो फिर बिखरा रहा
2 टिप्पणियां:
एक नन्हा ख़ाब मेरी नींद में
पाँव उचकाकर तुझे छूता रहा
...........वाह ..क्या लिखा है आपने ...
कही कहीं लय इधर उधर लगी, बाकी भाव हमेशा की तरह पुख्ता रहे।
लिखते रहिये…
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