दिल,
ज़बां, ज़हन मेरे आज संवरना
चाहें
सब के सब सिर्फ तेरी बात ही करना चाहें
सब के सब सिर्फ तेरी बात ही करना चाहें
دل زباں ذھن مرے آج سنورنا
چاہیں
سب کے سب صرف تری بات ہی
کرنا چاہیں
दाग़ हैं हम तेरे
दामन के सो ज़िद्दी भी हैं
हम कोई रंग नहीं हैं के उतरना चाहें
हम कोई रंग नहीं हैं के उतरना चाहें
داغ ہیں ہم ترے دامن کے سو
ضدی بھی ہیں
ہم کوئی رنگ نہیں ہیں کے
اترنا چاہیں
आरज़ू है हमें सहरा
की सो हैं भी सैराब
ख़ुश्क हो जाएँ हम इक पल में जो झरना चाहें
ख़ुश्क हो जाएँ हम इक पल में जो झरना चाहें
آرزو ہے ہمیں سہرا کی سو
ہیں بھی سیراب
خشک ہو جاہیں ہم اک پل میں
جو جھرنا چاہیں
ये बदन है तेरा, ये आम सा रस्ता तो नहीं
इसके हर मोड़ पे हम सदियों ठहरना चाहें
इसके हर मोड़ पे हम सदियों ठहरना चाहें
یہ بدن ہے تیرا یہ عام سا
رستہ تو نہیں
اس کے ہر موڈ پے ہم صدیوں
ٹھہرنا چاہیں
ये सहर है तो भला
चाहिए किसको ये के हम
शब की दीवार से सर फोड़ के मरना चाहें
शब की दीवार से सर फोड़ के मरना चाहें
یہ سحر ہے تو بھلا چاہئے
کیسکو یہ کہ ہم
شب کی دیوار سے سر پھوڑکے
مارنا چاہیں
जैसे सोये हुए पानी
में उतरता है सांप
हम भी चुपचाप तेरे दिल में उतरना चाहें
हम भी चुपचाप तेरे दिल में उतरना चाहें
جیسے سوئے ہوئے پانی میں
اترتا ہے سانپ
ہم بھی چپ چاپ ترے دل میں
اترنا چاہیں
आम से शख़्स के
लगते हैं यूँ तो तेरे पाँव
सारे दरिया ही जिन्हें छू के गुज़रना चाहें
सारे दरिया ही जिन्हें छू के गुज़रना चाहें
عام سے شخص کے لگتے ہیں
یوں تو تیرے پانو
سارے دریا ہی جنہیں چھو کے
گزرنا چاہیں
चाहते हैं के कभी
ज़िक्र हमारा वो करें
हम भी बहते हुए पानी पे ठहरना चाहें
हम भी बहते हुए पानी पे ठहरना चाहें
چاہتے ہیں کہ کبھی ذکر
ہمارا وو کریں
ہم بھی بہتے ہوئے پانی پے
ٹھہرنا چاہیں
नाम आया है तिरा जब
से गुनहगारो
में
सब गवह अपनी गवाही से मुकरना चाहें
सब गवह अपनी गवाही से मुकरना चाहें
نام آیا ہے ترا جب سے
گنہگاروں میں
سب گوہ اپنی گواہی سے
مکرنا چاہیں
वस्ल औ हिज्र के दरिया में वही उतरें जो
इस तरफ डूब के उस ओर उबरना चाहें
وصل اور ہجر کے دریا میں
وہی اتریں جو
اس طرف ڈوب کے اس اور
ابرنا چاہیں
कोई आएगा नहीं टुकड़े हमारे चुनने
हम अपने जिस्म के अन्दर ही बिखरना चाहें
کوئی ایگا نہیں ٹکڑے ہمارے
چننے
ہم اپنے جسم کے اندر ہی
بکھرنا چاہیں
-swapnil-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें