मंगलवार, 11 अगस्त 2015

चांदनी मुझ से भी कभी बिखरे/چاندنی مجھ سے بھی کبھی بکھرے

चांदनी मुझ से भी कभी बिखरे
दाग़ मुझ में हैं चाँद से गहरे

चोट करते हुए छुपा दी थी
अपनी तस्वीर घाव में तेरे

धूप की इक नदी में उतरा हूँ
ले के पलकों पे ख़्वाब के क़तरे

ये शरर ही कहानियां हैं मिरी
उड़ते हैं जो अलाव से मेरे

वरना मरकज़ नहीं मैं नुक़्ता हूँ
मुझको रहते हैं दायरे घेरे

एक रनवे पे दौड़ते हैं हम
और रोज़े-अज़ल के हैं उतरे

कब तलक मैं हरा रहूँगा भला
चार जानिब हैं काठ के चेहरे

उस के सब राज़दार डूब गए
शाम के राज़ थे बड़े गहरे

शोर करते हैं जिस्म की तह में
तेरे ख़ामोश लम्स के क़तरे

बीच रस्ते में इक सराय मिली
अश्क गालों पे आ के टुक ठहरे


چاندنی مجھ سے بھی کبھی بکھرے
داغ میرے ہیں چاند سے گہرے

چوٹ کرتے ہوئے چھپا دی تھی
اپنی تصویر گھاؤ میں تیرے

دھوپ کی اک ندی میں اترا ہوں
لے کے پلکوں پہ خواب کے قطرے

یہ شرر ہی کہانیاں ہیں مری
اڑتے ہیں جو الاؤ سے میرے

ورنہ مرکز نہیں میں نقطہ ہوں
مجھ کو رہتے ہیں دائرے گھیرے

ایک رن وے پہ دوڑتے ہیں ہم
اور روزے ازل کے ہیں اترے

کب تلک میں ہرا راہوں گا بھلا
چار جانب ہیں کاٹھ کے چہرے

اس کے سب رازدار ڈوب گئے
شام کے راز تھے بڑے گہرے

شور کرتے ہیں جسم کی تہ میں
تیرے خاموش لمس کے قطرے

بیچ راستے میں اک سراۓ ملی
اشک گالوں پر آ کے ٹک ٹھہرے

-swapnil tiwari-

गुरुवार, 25 जून 2015

छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की/چھپی نہیں ہے شکل رات میں بھی رہگزار کی


छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की
है रौशनी फ़ज़ा में पुरउम्मीद इंतज़ार की

अजीब ताल-मेल है हमारी चाल-ढाल में
जमी हुई है मुझ पे ही नज़र मिरे शिकार की

न जाने कैसा ग़म पिला दिया है तूने दिल इसे
हमारी शब को लत सी लग गयी है तेरे बार की

नए सुरों की कोंपले उगें मुझे सदा तो दे
कि गिर चुकी है एक-एक धुन मिरे सितार की

न जाने क्या बरस रहा है ओट बर्फ़ की लिए
गिरी पड़ी हैं पत्तियाँ तमाम देवदार की

मैं तेरे दोस्तों से ख़ूब मिल रहा हूँ आजकल
है मेरे पास आज तेरी याद भी उधार की

बहुत घनी है याद तेरी, बस के अब मैं रो पडूँ
कमी है बन में आज सिर्फ़ एक आबशार की

ये कौन है जो रुत के रथ पे इन दिनों सवार है
उड़ा रहा है धूल जो फ़ज़ाओं में बहार की

वो चाँद का भंवर हमें तो ले ही डूबता मगर
तेरे ख़याल के बहाव में ये शब भी पार की

 

چھپی نہیں ہے شکل رات میں بھی رہگزار کی

ہے روشنی فضا میں پر امید انتظار کی

 

عجیب تال میل ہے ہماری چال ڈھال میں

جمی ہوئی ہے مجھ پہ ہی نظر مرے شکار کی

 

نہ جانے کیسا غم پلا دیا ہے تو نے دل اسے

ہماری شب کو لت سی لگ گئی ہے تیرے بار کی

 

نئے سروں کی کونپلیں اگیں مجھے صدا تو دے

کہ گر چکی ہے ایک ایک دھن مرے ستار کی

 

نہ جانے کیا برس رہا ہے اوٹ برف کی لئے

گری پڑی ہیں پتیاں تمام دیودار کی

 

میں تیرے دوستوں سے خوب مل رہا ہوں آج کل

ہے میرے پاس آج تیری یاد بھی ادھار کی

 

بہت گھنی ہے یاد تیری، بس کہ اب میں رو پڑوں

کمی ہے بن میں آج صرف ایک آبشار کی

 

یہ کون ہے جو رت کے رتھ پے ان دنوں سوار ہائی

اڑا رہا ہے دھول جو فضاؤں میں بہار کی

 

وہ  چاند کا بھنور ہمیں تو لے ہی ڈوبتا مگر

تیرے خیال کے بھاؤ میں یہ شب بھی پار کی

 

-swapnil-

बुधवार, 25 मार्च 2015

तुझ से वाबस्ता कोई और कहानी लाऊँ/تجھ سے وابستہ کوئی اور کہانی لاؤں



रंग में तेरे रंगी हो वो उदासी लाऊँ
तुझ से वाबस्ता कोई और कहानी लाऊँ


घूम फिर कर मुझे याद आना है इक वो ही शख़्स
अब कहाँ से मैं कोई दूसरा माज़ी लाऊँ


पहले तो ध्यान में लाऊँ तिरा उजला चेहरा
फिर गुमाँ में मैं तिरी नर्म सदा भी लाऊँ


इस जज़ीरे पे मिरे क़त्ल का इलज़ाम तो है
पर कहाँ से मैं समंदर की गवाही लाऊँ


तब कहीं जा के मसाइल मैं सुनूँ अपने भी
ख़ुद से मिलने पे सिफ़ारिश जो तुम्हारी लाऊँ


देर तक ठहरेगा दुःख का ये ज़रा सा लम्हा
अब बता कैसे कहानी में रवानी लाऊँ


तेरे साये की सदा से वो अचानक भर जाय
धूप का कासा मैं तेरे लिए ख़ाली लाऊं





رنگ میں تیرے رنگی ہو وو اداسی لاؤں
تجھ سے وابستہ کوئی اور کہانی لاؤں


گھوم پھر کر مجھے یاد آنا ہے اک وو ہی شخص
اب کہاں سے میں کوئی دوسرا ماضی لاؤں


پہلے تو دھیان میں لاؤں ترا اجلا چہرہ
پھر گماں میں میں تری نرم صدا بھی لاؤں


اس جزیرے پہ مرے قتل کا الزام تو ہے
پر کہاں سے میں سمندر کی گواہی لاؤں


تب کہیں جا کے مسائل میں سنوں اپنے بھی
خود سے ملنے پہ سفارش جو تمھاری لاؤں


دیر تک ٹھہرے گا دکھ کا یہ ذرا سا لمحہ
اب بتا کیسے کہانی میں روانی لاؤں


ترے سائے کی صدا سے وو اچانک بھر جائے
دھوپ کا کاسہ میں تیرے لئے خالی لاؤں




-Swapnil Tiwari-