सोमवार, 6 दिसंबर 2010

अपनी जिद हूँ, आप अड़ा हूँ


जाने क्यूं इस ज़िद पे अड़ा हूँ
अपने मुक़ाबिल आप खड़ा हूँ

चाँद रहा हूँ माँ की खातिर
यानी बनने में बिगड़ा हूँ

मैं अपने मन के कमरे में
जाने क्यूं बेहोश पड़ा हूँ

मैं ही भीष्म हूँ, मैं ही अर्जुन
मैं ही बन कर तीर गड़ा हूँ

दूर तलक उखड़ी है मिट्टी
मैं जब भी जड़ से उखड़ा हूँ

दिल में वो उतना ही आये
शहरों से जितना झगड़ा हूँ

“आतिश” मन की आंच बढ़ा लूं?
तुम कहते हो कच्चा घड़ा हूँ

शनिवार, 8 मई 2010

रात की एक रात :)

सिलवट सिलवट चाँद पड़ा है,
हर कोने पे तारे हैं ,
कुछ उल्काएं हैं जो गिरी हैं
बिस्तर के सिरहाने से ,
ओस की बूंदे सुलग रही हैं
बिस्तर के पाए के पास ,
तकिये के नीचे इक
मिल्की वे कि साँसे अटकी हैं...

जाने किसके साथ गुजारी
रात ने अपनी रात यहाँ ...! :D

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

शाम-ओ-सहर

इक शाम उठाकर
साहिल से
तुमने बाँधी है
ज़ुल्फो मे
इक रिबन उठा कर
लहरों से,

अब सुबह जो
खोली हैं जुल्फे
इक झरना सा
बह निकाला है,
इक मौज उजाले की जानां
कल कल की सदा मे
बहती है....

ये भीगे बाल
सुख़ाओ ना,
इक बादल की
टॉवेल लाकर
अब इनको ज़रा सा
झटकाओ,
अब शाम-ओ-सहर के
कुछ छींटे
चेहरे पे मेरे तुम
बरसाओ.......

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

लो नज़्म हुई जानां ..!!

कुछ शोख इशारों से
कुछ फूल बहारों से
दरिया के किनारों से
चंदा से सितारों से
कोई नज़्म नहीं बनती ..

कुछ शोख इशारे , तुम
कुछ फूल बहारें , तुम
दरिया के किनारे तुम
ये चाँद सितारे ,तुम
लो नज़्म हुई जानां ..!!

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

रोगन

दीवारों से
टेक लगाकर
गर कुछ देर
आराम करो ,
रंग छूट कर
कपड़ों पर
आ लगता है....

तेरी रूह पे
इक दिन जानां
मेरा रोगन
लगा मिलेगा ,
कब से तू भी
मेरे दिल पर
टेक लगाकर
बैठी है ............ !