रविवार, 25 दिसंबर 2016

दिसंबर में भी तेरी धुंध में हूँ/دسمبر میں بھی تیری دھند میں ہوں

دسمبر میں بھی تیری دھند میں ہوں
میں پچھلی جنوری کی دھند میں ہوں
दिसंबर में भी तेरी धुंध में हूँ
मैं पिछली जनवरी की धुंध में हूँ
وہ مبہم شخص بھی میں ہی ہوں شاید
بچاؤ ! میں طلسمی دھند میں ہوں
वो मुबहम शख़्स भी मैं ही हूँ शायद
बचाओ ! मैं तिलिस्मी धुंध में हूँ
میں اس کوہسار کی چوٹی پے ہوں اور
تیری یادوں کی گہری دھند میں ہوں
मैं इस कुहसार की चोटी पे हूँ और
तेरी यादों की गहरी धुंध में हूँ।
جنوں کی دھوپ لے کر چل رہا ہوں
میں اب تک اس گلی کی دھند میں ہوں
जुनूँ की धूप ले कर चल रहा हूँ
मैं अब तक उस गली की धुंध में हूँ
مجھے رنگوں سے خوشبو آ رہی ہے
یقیناً میں نشیلی دھند میں ہوں
मुझे रंगों से ख़ुशबू आ रही है
यक़ीनन मैं नशीली धुंध में हूँ
خدا کو دھند سے جب بھی صدا ڈی
جواب آیا کہ میں بھی دھند میں ہوں
ख़ुदा को धुंध से जब भी सदा दी
जवाब आया कि मैं भी धुंध में हूँ
کسی کہرے کا ہے آسیب مجھ پر
مجھے لگتا ہے میں ہی دھند میں ہوں
किसी कुहरे का है आसेब मुझ पर
मुझे लगता है मैं ही धुंध में हूँ
تم اپنے ہی دھویں کی حد میں رہنا
مجھے دیکھو ! میں اپنی دھند میں ہوں
तुम अपने ही धुंए की हद में रहना
मुझे देखो! मैं अपनी धुंध में हूँ 

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

ghazal

जब भी दिख जाएँ वो हैरत करना
ऐसे रंगों की हिफ़ाज़त करना

جب بھی دیکھ جائیں وہ، حیرت کرنا
ایسے..رنگوں کی حفاظت کرنا


उस का मुझ से यूँ ही लड़ लेना और
घर की चीजों से शिकायत करना

اس کا مجھ سے یوں ہی لڑ لینا اور
گھر کی چیزوں سے شکایات کرنا


काम ये कोई भी कर देगा पर
इश्क! तुम मेरी वज़ाहत करना

کام یہ کوئی بھی کر دیگا پر
عشق ! تم میری وضاحت کرنا

इस से पहले के उसे देखो तुम
ठीक से सीख लो हैरत करना

اس سے پہلے کہ اسے دیکھو تم
ٹھیک سے سیکھ لو حیرت کرنا


मेरे ता'वीज़ में जो काग़ज़ है
उस पे लिक्खा है मुहब्बत करना

میرے تعویز میں جو کاغذ ہے
اس پے لکّھا ہے.. محبّت کرنا


रोकना... उस को बना कर बातें
कुछ हो गर तो शिकायत करना

روکنا اس کو.. بنا کر باتیں
کچھ نہ ہو گر تو شکایات کرنا

-Swapnil Tiwari-

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

नज़्म/نظم

काली रात है
काली रात पे रंग नहीं चढ़ता है कोई
झिलमिल झिलमिल करते तारे
सुर्ख़ अगर हो जाएँ भी तो
किस की नज़र में आएंगे ये
चाँद ही होता
सुर्ख़ रंग उस पर फबता भी।
काली रात है
काली रात पे रंग नहीं चढ़ने वाला है
मैंने अपनी नब्ज़ काट कर
अपना लहू बर्बाद कर दिया...
کالی رات ہے
کالی رات پہ رنگ نہیں چڑھتا ہے کوئی
جھلمل جھلمل کرتے تارے
سرخ اگر ہو جائیں بھی تو
کس کی نظرمیں آئینگے یہ یہ
چاند ہی ہوتا
سرخ رنگ اس پر پھبتا بھی ...
کالی رات ہے
کالی رات پہ رنگ نہیں چڑھنے والا ہے
میں نے اپنی نبض کاٹ کر
اپنا لہو برباد کر دیا....
-swapnil tiwari-

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

उम्मीद/امید

मुझे ये पता था
के दीवार घर की
नदी की तरह
बह न पायेगी फिर भी
मैं तस्वीरें ले आया था
मछलियों की...

مجھے یہ پتا تھا
کہ دیوار گھر کی
ندی کی طرح
بہ نہ پائے گی پھر بھی
میں تصویر لے آیا تھا
مچھلیوں کی ...
-Swapnil-

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

इंतज़ार सुर है इक/انتظار سر ہے اک

इंतज़ार सुर है इक
मुद्दतों जो इक लय में
खामुशी से बजता है ...
दूर-पास की चापें
तेज़-धीमी हर आहट
दस्तकें जो दर पे हुईं
और जो नहीं भी हुईं
बोल हैं जो इस सुर में
वक़्त भरता रहता है
उम्र चलती रहती है
गीत बनता रहता है.....




انتظار سر ہے اک
مدّتوں جو اک لے میں
خامشی سے بجتا ہے
دور پاس کی چاپیں
تیز دھیمی ہر آہٹ
دستکیں جو دار پہ ہوئیں
اور جو نہیں بھی ہوئیں
بول ہیں جو اس سر میں
وقت بھرتا رہتا ہے
امر چلتی رہتی ہے
گیت بنتا رہتا ہے
-Swapnil-

बुधवार, 15 जून 2016

मैं धीमा राग हूं भाता है ये उतार मुझे/میں دھیما راگ ہوں بھاتا ہے یہ اتار مجھے

मैं धीमा राग हूं भाता है ये उतार मुझे
सदा की ओट में ख़ामुशी पुकार मुझे

घुमाता है जो लड़कपन का रेगज़ार मुझे
उठाये फिरता है काँधे पे इक ग़ुबार मुझे

तैरना ही बने और डूब ही पाऊं
हर एक मौज किये जाय दरकिनार मुझे

कुछ ऐसा दर्द है जी चाहता है तेरी याद
वो धुन बजाये करे अब जो तार तार मुझे

नहीं है दूसरी गाड़ी कोई भी तेरे बाद
यूँ बीच नींद में ख़्वाब मत उतार मुझे

ज़रा ख़याल भर आता है एक शै का और
दबोच लेते हैं फिर उस के इश्तेहार मुझे


میں دھیما راگ ہوں بھاتا ہے یہ اتار مجھے
صدا کی اوٹ میں آ خامشی پکار مجھے 

گھماتا ہے جو لڈکپن کا ریگزار مجھے
اٹھائے پھرتا ہے کاندھے پہ اک غبار مجھے

نہ تیرنا ہی بنے اور نہ ڈوب ہی پاؤں
ہر ایک موج کئے جائے درکنار مجھے

کچھ ایسا درد ہے جی چاہتا ہے تیری یاد
وہ دھن بجائے کرے اب جو تار تار مجھے

نہیں ہے دوسری گاڑی کوئی بھی تیرے بعد
یوں بیچ نیند میں اے خواب مت اتار مجھے

ذرا خیال بھر آتا ہے ایک شے کا اور
دبوچ لیتے ہیں پھر اس کے اشتہار مجھے

-Swapnil Tiwari-


मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

यूँ ही एड़ी पे घूमना है मुझे/ یوں ہی ایڑی پہ گھومنا ہے مجھے

यूँ ही एड़ी पे घूमना है मुझे
अब ये नुक़ता ही दायरा है मुझे

रतजगा हूं कि नींद हूं उस की
उस ने आँखों में रख लिया है मुझे

मैं हूं तस्वीर इक ख़मोशी की
एक आवाज़ ने रचा है मुझे

उस से पहले भी गुम हुआ हूं मैं
उस ने इस बार खो दिया है मुझे

मेरे साहिल से शाम को सूरज
देर तक यूँ ही देखता है मुझे

मेरी हर इक कला से वाक़िफ़ है
चाँद बरसों से जानता है मुझे

मेरा दिल ही है पासबां फिर भी
तेरे दर पर टटोलता है मुझे

मैं भला था तिरे तख़य्युल में
तू ने लिख कर, मिटा दिया है मुझे

किस जगह नींद है पता है मगर
इक बुरा ख्व़ाब रोकता है मुझे

बढ़ता जाता है दायरा--सराब
क्या ये सहरा डुबो रहा है मुझे

कैसा ग़म है! कि अपनी आँखों से
आंसुओं ने गिरा दिया है मुझे


یوں ہی ایڑی پہ گھومنا ہے مجھے
اب یہ نقطہ ہی دائرہ ہے مجھے

رتجگا ہوں کہ نیند ہوں اس کی
اس نے آنکھوں میں رکھ لیا ہے مجھے

میں ہوں تصویر اک خموشی کی
ایک آواز نے رچا ہے مجھے

اس سے پہلے بھی گم ہوا ہوں میں
اس نے اس بار کھو دیا ہے مجھے

میرے ساحل سے شام کو سورج
دیر تک یوں ہی دیکھتا ہے مجھے

میری ہر اک کلا سے واقف ہے
چاند برسوں سے جانتا ہے مجھے

میرا دل ہی ہے پاسباں پھر بھی
تیرے در پر ٹٹولتا ہے مجھے

میں بھلا تھا ترے تخیّل میں
تونے لکھ کر مٹا دیا ہے مجھے

بڑھتا جاتا ہے دائرہ_ سراب
کیا یہ صحرا ڈبو رہا ہے مجھے

کس جگہ نیند ہے پتا ہے مگر
اک برا خواب روکتا ہے مجھے

ایسا غم ہے کہ اپنی آنکھوں سے
آنسوؤں نیں گرا دیا ہے مجھے