बुधवार, 15 जून 2016

मैं धीमा राग हूं भाता है ये उतार मुझे/میں دھیما راگ ہوں بھاتا ہے یہ اتار مجھے

मैं धीमा राग हूं भाता है ये उतार मुझे
सदा की ओट में ख़ामुशी पुकार मुझे

घुमाता है जो लड़कपन का रेगज़ार मुझे
उठाये फिरता है काँधे पे इक ग़ुबार मुझे

तैरना ही बने और डूब ही पाऊं
हर एक मौज किये जाय दरकिनार मुझे

कुछ ऐसा दर्द है जी चाहता है तेरी याद
वो धुन बजाये करे अब जो तार तार मुझे

नहीं है दूसरी गाड़ी कोई भी तेरे बाद
यूँ बीच नींद में ख़्वाब मत उतार मुझे

ज़रा ख़याल भर आता है एक शै का और
दबोच लेते हैं फिर उस के इश्तेहार मुझे


میں دھیما راگ ہوں بھاتا ہے یہ اتار مجھے
صدا کی اوٹ میں آ خامشی پکار مجھے 

گھماتا ہے جو لڈکپن کا ریگزار مجھے
اٹھائے پھرتا ہے کاندھے پہ اک غبار مجھے

نہ تیرنا ہی بنے اور نہ ڈوب ہی پاؤں
ہر ایک موج کئے جائے درکنار مجھے

کچھ ایسا درد ہے جی چاہتا ہے تیری یاد
وہ دھن بجائے کرے اب جو تار تار مجھے

نہیں ہے دوسری گاڑی کوئی بھی تیرے بعد
یوں بیچ نیند میں اے خواب مت اتار مجھے

ذرا خیال بھر آتا ہے ایک شے کا اور
دبوچ لیتے ہیں پھر اس کے اشتہار مجھے

-Swapnil Tiwari-


1 टिप्पणी:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

नहीं है दूसरी गाड़ी कोई भी तेरे बाद
यूँ बीच नींद में ऐ ख़्वाब मत उतार मुझे!
.
चूमने लायक शे'र!! बहुत ही प्यारी गज़ल!