गुरुवार, 25 जून 2015

छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की/چھپی نہیں ہے شکل رات میں بھی رہگزار کی


छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की
है रौशनी फ़ज़ा में पुरउम्मीद इंतज़ार की

अजीब ताल-मेल है हमारी चाल-ढाल में
जमी हुई है मुझ पे ही नज़र मिरे शिकार की

न जाने कैसा ग़म पिला दिया है तूने दिल इसे
हमारी शब को लत सी लग गयी है तेरे बार की

नए सुरों की कोंपले उगें मुझे सदा तो दे
कि गिर चुकी है एक-एक धुन मिरे सितार की

न जाने क्या बरस रहा है ओट बर्फ़ की लिए
गिरी पड़ी हैं पत्तियाँ तमाम देवदार की

मैं तेरे दोस्तों से ख़ूब मिल रहा हूँ आजकल
है मेरे पास आज तेरी याद भी उधार की

बहुत घनी है याद तेरी, बस के अब मैं रो पडूँ
कमी है बन में आज सिर्फ़ एक आबशार की

ये कौन है जो रुत के रथ पे इन दिनों सवार है
उड़ा रहा है धूल जो फ़ज़ाओं में बहार की

वो चाँद का भंवर हमें तो ले ही डूबता मगर
तेरे ख़याल के बहाव में ये शब भी पार की

 

چھپی نہیں ہے شکل رات میں بھی رہگزار کی

ہے روشنی فضا میں پر امید انتظار کی

 

عجیب تال میل ہے ہماری چال ڈھال میں

جمی ہوئی ہے مجھ پہ ہی نظر مرے شکار کی

 

نہ جانے کیسا غم پلا دیا ہے تو نے دل اسے

ہماری شب کو لت سی لگ گئی ہے تیرے بار کی

 

نئے سروں کی کونپلیں اگیں مجھے صدا تو دے

کہ گر چکی ہے ایک ایک دھن مرے ستار کی

 

نہ جانے کیا برس رہا ہے اوٹ برف کی لئے

گری پڑی ہیں پتیاں تمام دیودار کی

 

میں تیرے دوستوں سے خوب مل رہا ہوں آج کل

ہے میرے پاس آج تیری یاد بھی ادھار کی

 

بہت گھنی ہے یاد تیری، بس کہ اب میں رو پڑوں

کمی ہے بن میں آج صرف ایک آبشار کی

 

یہ کون ہے جو رت کے رتھ پے ان دنوں سوار ہائی

اڑا رہا ہے دھول جو فضاؤں میں بہار کی

 

وہ  چاند کا بھنور ہمیں تو لے ہی ڈوبتا مگر

تیرے خیال کے بھاؤ میں یہ شب بھی پار کی

 

-swapnil-

1 टिप्पणी:

Fursatnama ने कहा…

न जाने क्या बरस रहा है ओट बर्फ़ की लिए
गिरी पड़ी हैं पत्तियाँ तमाम देवदार की....

वाह! ग़ज़ल है या ख़ूबसूरती!