मंगलवार, 15 मार्च 2016

کسی نے بھی نہ مری ٹھیک ترجمانی کی/किसी ने भी न मिरी ठीक तर्जुमानी की

किसी ने भी न मिरी ठीक तर्जुमानी की
धुंआ धुआँ हैं फ़ज़ा मेरी हर कहानी की

चलो ! निकालो मिरे पाँव में चुभा तारा
ज़मीं की सत्ह तुम्हीं ने तो आसमानी की

ये वक़्त लंबे दिनों का है सो ये रातें अब
बढ़ा रही हैं उदासी ही रातरानी की

मैं रो के उट्ठा तो आँखों से रेत झड़ने लगी
कि तिशनगी ही वसीयत है खारे पानी की

नदी किनारे लगा देती थी, सो क्या करते
किसी तरह से भंवर हमने ज़िंदगानी की

तिरा ख़याल हुआ कैनवस पे मेहमाँ कल
तमाम रंगों ने मिलजुल के मेज़बानी की

गुनाहे-इश्क़ किया और कोई सज़ा न हुई!
ज़ुरुर तुम ने सुबूतों से छेड़खानी की


کسی نے بھی نہ مری ٹھیک ترجمانی کی
دھواں دھواں ہے فضا میری ہر کہانی کی

چلو ! نکالو مرے پاؤں میں چبھا تارا
زمیں کی سطح تمہی نے تو آسمانی کی

یہ وقت لمبے دنوں کا ہے سو یہ راتیں اب
بڑھا رہی ہیں اداسی ہی رات رانی کی

میں رو کے اٹھا تو آنکھوں سے ریت جھڑنے لگی
کہ تشنگی ہی وصیت ہے کھارے پانی کی

ترا خیال ہوا کینوس پہ مہماں کل
تمام رنگوں نے مل جل کے میزبانی کی

گناھ عشق کیا اور کوئی سزا نہ ہوئی
زرور تم نے ثبوتوں سے چھیڑخانی کی

1 टिप्पणी:

Fursatnama ने कहा…

तिरा ख़याल हुआ कैनवस पे मेहमाँ कल
तमाम रंगों ने मिलजुल के मेज़बानी की
वा‍‍ह.....वाह....वाह!
बहुत खूब स्वप्निल! सिर्फ़ आप ही ऐसी लफ्ज़ों की मेजबानी कर सकते हैं!!