इक शाम उठाकर
साहिल से
तुमने बाँधी है
ज़ुल्फो मे
इक रिबन उठा कर
लहरों से,
अब सुबह जो
खोली हैं जुल्फे
इक झरना सा
बह निकाला है,
इक मौज उजाले की जानां
कल कल की सदा मे
बहती है....
ये भीगे बाल
सुख़ाओ ना,
इक बादल की
टॉवेल लाकर
अब इनको ज़रा सा
झटकाओ,
अब शाम-ओ-सहर के
कुछ छींटे
चेहरे पे मेरे तुम
बरसाओ.......
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
लो नज़्म हुई जानां ..!!
कुछ शोख इशारों से
कुछ फूल बहारों से
दरिया के किनारों से
चंदा से सितारों से
कोई नज़्म नहीं बनती ..
कुछ शोख इशारे , तुम
कुछ फूल बहारें , तुम
दरिया के किनारे तुम
ये चाँद सितारे ,तुम
लो नज़्म हुई जानां ..!!
कुछ फूल बहारों से
दरिया के किनारों से
चंदा से सितारों से
कोई नज़्म नहीं बनती ..
कुछ शोख इशारे , तुम
कुछ फूल बहारें , तुम
दरिया के किनारे तुम
ये चाँद सितारे ,तुम
लो नज़्म हुई जानां ..!!
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
रोगन
दीवारों से
टेक लगाकर
गर कुछ देर
आराम करो ,
रंग छूट कर
कपड़ों पर
आ लगता है....
तेरी रूह पे
इक दिन जानां
मेरा रोगन
लगा मिलेगा ,
कब से तू भी
मेरे दिल पर
टेक लगाकर
बैठी है ............ !
टेक लगाकर
गर कुछ देर
आराम करो ,
रंग छूट कर
कपड़ों पर
आ लगता है....
तेरी रूह पे
इक दिन जानां
मेरा रोगन
लगा मिलेगा ,
कब से तू भी
मेरे दिल पर
टेक लगाकर
बैठी है ............ !
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