शनिवार, 18 मई 2013

फ़ुर्सत


बंद कमरा, मेरे माज़ी का
खुला है आज बरसों बाद
इस पुराने बंद कमरे की हवा
कब की पुरानी पड़ चुकी है
एक इक लम्हे पे दीमक लग चुकी है अब यहाँ
और हर इक याद पर
सीलन लगी है..
सोचता हूँ आज उसको
फोन कर लूँ
इस तरह कमरे की हर शय को
दिखा दूं धूप मैं..

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