घर के जिस कमरे में जाऊं
इक कमरा, जो ग़ायब है
हर कमरे में साथ मिरे
आ जाता है
....जैसे मेरा साया हो
माज़ी का वो ग़ायब कमरा
बंद ही रहता है अक्सर
जैसे उसको खोलने वाली
उसके ताले के कानों में
‘खुल जा सिम सिम’ कहने वाली
चाभी खो बैठा हूँ कहीं पर..
लेकिन अपने आप कभी उसका दरवाज़ा
मुझको खुला मिलता है तो
मैं उसके अन्दर बैठा घंटों रोता हूँ,
और इक आदमक़द आईने पर जो धूल पड़ी मिलती है
उस पर नाम तिरा लिखता हूँ
گھر کے جس کمرے میں جاوں
اک کمرہ، جو غایب ہے
ہر کمرے میں ساتھ میرے آ جاتا ہے
جیسے میرا سایہ ہو.......
ماضی کا وو غایب کمرہ
بند ہی رہتا ہے اکثر
جیسے اسکو کھولنے والی
اسکے تالے کے کانوں میں
'کھل جا سمسم کہنے والی
چابھی کھو بیٹھا ہوں کہیں پر
لیکن اپنے آپ کبھی
اسکا دروازہ مجھکو کھلا ملتا ہے تو
گھنٹوں میں اسکے اندر بیٹھا روتا ہوں
اور اک آدامقد آئینے پر جو دھول پدی ملتی ہے
اس پر نام تیرا لکھتا ہوں
1 टिप्पणी:
मुझे याद आता है वो शख्स जो आज के दिन चीख चीख कर सारे रास्तों में घूमता फिर रहा था और गा रहा था - रोको ना, रोको ना, मुझको प्यार करने दो! डार्लिंग आँखों से आँखें चार करने दो!!" और आज वो उस कमरे में बैठा आँसू बहाता है!!
बुलन्दी या तन्हाई!! या बुलन्दी की तन्हाई!!
जो भी है.. मेरी बिछड़ी नज़्म मुझसे बरसों बाद मिली है!! शुक्रिया एक बार फिर मुझे मुझसे मिलाने का!!
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