गुरुवार, 19 मई 2011

भोर

सूरज
नयी सुबह की
दहलीज़ पे खड़ा है
और एक नज़्म
मेरी दहलीज़ पे,

तुम आओ
कुण्डी खोलो
दोनों तरफ उजाला हो...!

23 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

स्वप्निल जी........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम

vandana gupta ने कहा…

वाह ……क्या बात कही है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नज़्म की कुंडी पहले ... नज़्म सूरज चाँद धूप छाँव सब लिए आती है

shikha varshney ने कहा…

क्या बात है ...वाह..

Sunil Kumar ने कहा…

वाह क्या बात है , बहुत खुबसूरत.....

शिवा ने कहा…

स्वप्निल जी
बहुत ही सुंदर रचना .

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब! कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..

Deepak Saini ने कहा…

वाह क्या उजाला है
शुभकामनाये

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर नज़्म।

pallavi trivedi ने कहा…

just beautiful...love it.

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

इधर भी उजाला हुआ तुम्हारी नज़्म का ;)

बेनामी ने कहा…

awwwwww........daddyyyyyyyyyyyyy ;)

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह बहुत खूब ...बहुत सुन्दर

डॉ .अनुराग ने कहा…

love this....

sonal ने कहा…

लिखने का मूड बनाने के लिए इतना ही काफी है ....शायद उस उजाले में कोई नज़्म पनप जाए

Avinash Chandra ने कहा…

मीठी सी सुबह :)

पारुल "पुखराज" ने कहा…

:))

Ravi Shankar ने कहा…

हो गया उजाला…… :)

कैसे हैं गुरु ??

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

Main accha hun ravi...tum kaise ho?

हमारीवाणी ने कहा…

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महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

वाह, चमत्कृत करती पंक्तियां।

aanch ने कहा…

:)