शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

ख़ाब मेरे घर बैठा है

नींद से कर बैठा है
ख़ाब मेरे घर बैठा है

अक्स मिरा आईने में
लेकर पत्थर बैठा है

एक बगूला* यादों का 
खा कर चक्कर बैठा है

उसकी नींदों पर इक ख़ाब
तितली बन कर बैठा है

रात की टेबल बुक करके 
चाँद डिनर पर बैठा है

जाता है बाहर भी
दिल में जो डर बैठा है

अँधियारा खामोशी से
ओढ़ के चादर बैठा है

आतिशधूप गयी कब की
घर में क्यूँ कर बैठा है?

बगूला - चक्रवात 


1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल..... चाँद का डिनर मस्त रहा होगा