रविवार, 27 मार्च 2016

दरीचा/دریچہ

घुटन ही घुटन है
फ़ज़ा जैसे इक बोझ उठाये हुए है
ये आधा उजाला तो बेहोश सा है
अधूरा अँधेरा भी बेहिस पड़ा है
यहां के सवेरों में शामें मिली हैं
तो रातों में किरनों की किरचें मिलेंगी
घुटन ही घुटन है
ये तस्वीर तेरी जो दीवार पर है
इसे क्या हटा दूँ?
कि मुमकिन है पीछे दरीचा छुपा हो.....

گھٹن ہی گھٹن ہے
فضا جیسے اک بوجھ اٹھائے ہوئے ہے
یہ آدھ اجالا تو بے ہوش سا ہے
ادھورا اندھیرا بھی بے حس پڑا ہے
یہاں کے سویروں میں شامیں ملی ہیں
تو راتوں میں کرنوں کی کرچیں ملیں گی
گھٹن ہی گھٹن ہے
یہ تصویر تیری جو دیوار پر ہے
اسے کیا ہٹا دوں ؟

کہ ممکن ہے پیچھے دریچہ چھپا ہو....... 

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