शनिवार, 9 अप्रैल 2016

दबी है कोई दुखती रग खुदाया/ دبی ہے کوئی دکھتی رگ خدایا

दबी है कोई दुखती रग खुदाया
ज़मीं ने आसमां सर पर उठाया

دبی ہے کوئی دکھتی رگ خدایا
زمیں نے آسماں سر پر اٹھایا

वो चलता जा रहा था दूर मुझसे
घना कुहरा था चारो सिम्त छाया

وہ چلتا جا رہا تھا دور مجھ سے
گھانا کوہرا تھا چاروں سمت چھایا

ये किस की याद-सी है दिल में मेरे
ये वीरानों को है किसने सजाया

یہ کس کی یاد سی ہے دل میں میرے
یہ ویرانوں کو کسنے ہے سجایا

अकेला था मैं उस नाटक में शायद
कि हर किरदार मैंने ही निभाया

اکیلا تھا میں اس ناٹک میں شاید
کہ ہر کردار میں نے ہی نبھایا

ये दुनिया आ गयी सकते में सारी
लतीफ़ा ज़िंदगी नें जब सुनाया

یہ دنیا آ گئی سکتے میں ساری
لطیفہ زندگی نے جب سنایا

न हो फिर जागने में देर मुझको
इसी इक बात नें शब भर जगाया

نہ ہو پھر جاگنے میں دیر مجھ کو
اسی اک بات نے شب بھر جگایا

तुम्हारे एक दिन को जज़्ब करके
ये आतिशज़िंदगी भर जगमगाया

تمھارے ایک دن کو جذب کر کے

یہ آتش زندگی بھر جگمگایا 

1 टिप्पणी:

Fursatnama ने कहा…

ये दुनिया आ गयी सकते में सारी
लतीफ़ा ज़िंदगी नें जब सुनाया....

आह! क्या आला शेर है!